- रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने भारतीय रेलवे की सुरक्षा प्रणाली “कवच” को खुद प्रदर्शित करते हुए कहा था कि ये दुनिया के ज़्यादातर देशों में चल रही यूरोपियन रेलवे सुरक्षा प्रणाली से कहीं आगे है और सेकंड लेवल की सुरक्षा प्रणाली के समकक्ष है जो दुनिया के चंद विकसित देशों में ही लागू है। अश्विनी वैष्णव ने दावा किया था कि “कवच” सिस्टम में ट्रेनें टकरा ही नहीं सकतीं। एक ही ट्रैक पर चलती हुई दो तेज़ रफ़्तार ट्रेनें भी कवच के कारण 400 मीटर पहले अपनेआप automatically रुक जाएँगी। ऐसे हर प्रचार से देशवासियों के मन में एक भरोसा जागता है … एक उम्मीद जागती है कि अब देश में रेल दुर्घटना, रेल भिड़ंत, यात्रियों के मारे जाने, गम्भीर घायल होने आदि के मनहूस समाचार सुनने नहीं मिलेंगे … लेकिन, फिर भरोसा टूटता है. सुरक्षा प्रणाली के अचूक और अभेद होने के दावे खोखले निकलते हैं। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने दावा किया था कि उन्होंने “स्वयं रिस्क लेकर” इस सुरक्षा प्रणाली को जाँचा था। एक ही ट्रैक पर विपरीत दिशा से हो तेज़ रफ़्तार ट्रेन में वे स्वयं बैठे और दूसरी तरफ़ से इंजिन में कई महत्वपूर्ण टॉप अधिकारी चले। इस “ख़तरनाक” ट्रायल में ट्रेनें अपने आप 400 मीटर पहले रुक गईं। लेकिन बालासोर में तो दो नहीं बल्कि तीन ट्रेनें एक दूसरे पर चढ़ गईं और कोई सुरक्षा प्रणाली उन्हें रोक ना पाई … बालासोर की रूह कंपाने वाली दुर्घटना हमारे रेलवे तंत्र के सुरक्षा तंत्र पर गंभीरतम प्रश्नचिन्ह लगाता है … तीसरी मालगाड़ी के पहले से दुर्घटनाग्रस्त दो ट्रेनों पर चढ़ने से तो आपराधिक लापरवाही की पराकाष्ठा ही हो गई। रेल दुर्घटना में मारे गए सभी यात्रियों को श्रद्धांजलि .. घायल यात्रियों के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना के साथ यह भी उम्मीद है कि इस दुर्घटना की निष्पक्ष जाँच के बाद दोषियों को ज़रा सा भी बख़्शा नहीं जाएगा। बालासोर की घटना की विभीषिका साधारण नहीं बल्कि रेलवे सुरक्षा प्रणाली के कई स्तर पर पूरी तरह ध्वस्त होने का परिणाम है। “कवच” का श्रेय लेने वाले अश्विनी वैष्णव को देश को झूठी उम्मीदें जगाने के लिए देशवासियों से क्षमा माँगनी चाहिए …