विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष: एक अवसर एवं संकल्प के रुप में मनाया जाना चाहिए आदिवासी दिवस
उपेन्द्र कुमार गौतम की रिपोर्ट
” *विश्व आदिवासी दिवस पर विशेष: एक अवसर एवं संकल्प के रुप में मनाया जाना चाहिए आदिवासी दिवस* ”
भारत अनेकताओ में एकता वाला देश है, अनेक धर्म, अनेक जातियां होने के बावजूद हम सब प्रथमतः भारतीय हैं। भारत के साथ-साथ संपूर्ण दुनिया के तमाम देशों में आदिवासी समुदाय के लोगो को देखा जा सकता है..इनकी अपनी संस्कृति है अपनी भाषा है, तीज-त्यौहार से लगाकर अपने अलग रीति-रिवाज रहे हैं इनकी अपनी एक अलग महत्वपूर्ण पहचान रही है। आदिवासी समुदाय से तात्पर्य हमारे वे समुदाय जो अपनी पारंपरिक भूमि पर निवास करते और जिनकी सांस्कृतिक पहचान जीवनशैली अद्भुत अद्वितीय रही हो! आदिवासी समुदाय का इतिहास अत्याधिक प्राचीन रहा है, यदि इतिहास के पन्नो को पलट कर देखे तो पाएंगे कि ये यहां के मूलनिवासी हैं.. सदैव जंगलो के रक्षक संरक्षक रहे हैं! प्रकृति को अपना जीवन मानने वाले..प्रकृति ही इनका घर..प्रकृति ही इनकी मां है। अगर हम आदिवासी संस्कृति प्रजातियों पर गहनता से अध्ययन करें तो पाते हैं कि..2016 में एक ऐतिहासिक रिकार्ड तैयार किया गया और एकत्रित डाटा से ज्ञात होता है कि..लगभग 2680 जनजातिय भाषाऍ खतरे में थीं और विलुप्त होने की कगार पर थीं, करीब 7 हजार आदिवासी भाषाओ की पहचान की गई जिसमें से 40 प्रतिशत विलुप्ति की कगार पर हैं..क्योंकि इन भाषाओ का उपयोग शिक्षा,संचार एवं शासकीय स्तर पर नहीं किया जाता..साथ ही साथ वक्त बदलता गया समाज आधुनिकता की ओर अग्रसरित हुये और वे धीरे धीरे अपनी सामुदायिक जातिगत भाषाओ को छोड़कर प्रचलित भाषाओ को अपनाते गये।इसलिए संयुक्त राष्ट्र ने इन भाषाओ के बारे में आमजन को अवगत कराने और जागरूकता फैलाने के लिए वर्ष 2019 को आदिवासी भाषाओ का अंतरराष्ट्रीय वर्ष घोषित किया! यह कदम उठाने का मुख्य उद्देश्य यह था कि..आदिवासी भाषाओ का भलीभांति संरक्षण हो सके और उन्हें विलुप्त होने से बचाया जा सके। धीरे-धीरे आदिवासी युवा भी परिश्रम और संघर्ष करके आगे बढ़ रहे हैं। देश की आजादी की लड़ाई हो या 1857 की क्रांति का दौर रहा हो..बिरसा मुंडा से लगाकर टंट्या मामा तक ना जाने कितने युवा क्रांतिकारियों के लहु ने इस धरती मां को आजाद कराने में अपना बलिदान दिया है! भारत की ये भूमि सदैव कर्जदार रहेगी आदिवासी महापुरुषों क्रांतिवीरों की जिन्होनें इस प्रकृति मां की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति हंसते हंसते दे दी। ऐसे ही महापुरुषों को स्मरण करने और आदिवासियों को जागरूक करने हर वर्ष 9 अगस्त को संपूर्ण विश्व में विश्व आदिवासी दिवस मनाया जाता है।आदिवासी समुदाय की संस्कृति खान-पान रहन सहन का अपना ही एक अनोखा तरीका रहा हो किंतु वे कभी इस समाज से अलग नहीं हैं..वे यहां के मूलनिवासी हैं..हम यहां के मूलनिवासी हैं। इस विश्व आदिवासी दिवस पर आदिवासी समाज के ह़क अधिकारों, उनकी शिक्षा उत्थान एवं प्राकृतिक संसाधनों पर उनके विशेष अधिकारों पर विचार करने की परम आवश्यकता है..किसी भी देश अथवा राज्य को एक विशेष पहचान वहां की जनजातियां ही दिलाती हैं। आज इनके अधिकारों,संस्कृति व जीवनयापन के अनूठे तरीकों के संरक्षण की आत्याधिक आवश्यकता है, अत: इस दिवस को एक अवसर एवं संकल्प के रुप में मनाया जाना चाहिए ताकि लोग आदिवासियों की संस्कृति से अवगत हो सकें। आदिकाल के इतिहास से अपनी कला संस्कृति और सभ्यता में देश की वास्तविक पहचान को संजोए हुए हमारे मूलनिवासी आदिवासी भाईयों बहनों को विश्व आदिवासी दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं !! जय जोहार..जय बिरसा..जय मूलनिवासी ।