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कविता :- कुमार राजेन्द्र व्याबरा होशंगाबाद मध्यप्रदेश

नदारद है,,,,,,,,,,,,,,

घर के पास लगे पेड़ पर
कौआ, तोता,गौरेया,
नीलकंठ सब आकर
बैठकर करते थे कलरब।
आँगन में हर पल हर दिन
इनकी हर हरकत
चूहा,बिल्ली,कुत्ता ही नही
हम सब लेते थे आंनद।

घरों से जंगलों की ओर
जंगलों से घरों की ओर
आते जाते पशुओँ की
बजती घण्टिया
कहती थी,हो गया सबेरा
होने को हे अब शाम।

जाने सब कहा चले गए
सूख गए पेड़,कट गए पेड़
पशु पक्षियों के दर्शन
हो गए दुर्लभ
घण्टियों की आवाज़
खामोश हो गई।

आँगन के वे पेड़
घरों के आसपास वे पेड़
जाने कौन काट ले गया
ले गया ठीक
पर वो आंनद सब ले गया।

ना नजर आती अब बिल्ली
ना नजर आते नीलकंठ
ना तोता ना वो गौरेया।
बस आँगन सूना सूना है
पूरा गाँव भी सूना, सूना ही है।

जाने सब लोग कहा,
चले गए।
जाने सब ये
क्या हो गया
हर तरफ हर गांव में
हर चीज नदारद है।

—— कुमार राजेन्द्र व्याबरा
होशंगाबाद मध्यप्रदेश)

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