पहले नाख़ून इतनी जल्द नहीं बढ़ते थे। हो सकता है काम करते हुए घिस जाते हों। परंतु आजकल तो तीसरे दिन ही बड़े-बड़े हो जाते हैं। कभी-कभी तो बराबर से कटकर उनमें फांस निकल आती है। वह तो सहन भी नहीं होती। उसको तो तुरंत काटना पड़ता है अन्यथा प्रत्येक काम में परेशान करती है। अलमारी खोल कर देखता हूं तो उसमें मेरा नेलकटर ग़ायब है। अवश्य रोहन ने ले लिया होगा और अपने नाख़ून काटकर पटक दिया होगा इधर-उधर। आजकल के बच्चे बहुत लापरवाह होते हैं।
सोनिया थी तब मेरे लिए एक नया नेलकटर बाज़ार से ख़रीदकर लाई थी, ‘इसे अपनी अलमारी में संभालकर रख लो।’ इसके बाद नाख़ून काटना आसान हो गया। कभी भूले से नेलकटर इधर-उधर रखा भी जाता तो घुटने में दर्द होने के बावजूद उठकर ढूंढती, फिर डांटती- ‘इधर-उधर रखकर ख़ुद भूल जाते हो। फिर सारा घर सिर पर उठा लेते।’
सोनिया जानती थी मुझे मीठा खाना बहुत पसंद है परंतु जब से शुगर की बीमारी लगी घर का कोई सदस्य मुझे मीठा नहीं खाने देता। कभी-कभी सोनिया अपने पल्लू में बर्फी छुपाकर चुपके से मेरी मुट्ठी में रख देती- कभी-कभी इंसान का खाने को मन तो करता भी है, सुबह-सवेरे उठकर पार्क में घूम आया करो, शुगर कंट्रोल में रहेगी। परंतु अब तो इस अधिकारपूर्वक कहने वाली ही नहीं रही। एक गहरी सांस उसके सीने में दफ़न हो गई।
सोनिया को दुनियादारी का बहुत गहरा अनुभव था। एक दिन मैंने कहा, सोनिया हम कितने भाग्यशाली हैं कि हमें इतनी अच्छी औलाद मिली है, सदैव हमारी सेवा में खड़ी रहती है। उसने कहा- तुम बहुत भोले हो जी। वक़्त पड़ने पर आदमी की पहचान होती है। अभी तो आपकी पेंशन आती है, जो हम दोनों से पूरी ख़र्च भी नहीं होती। अपना तो अपना, हम दोनों उनके भी अनेक काम कर देते हैं। अभी तो हम दोनों का शरीर चल रहा है। पता तब लगता है जब मां-बाप अपाहिज हो जाएं और उन पर ख़र्चा करना पड़े। मैंने कहा- सच, मैं प्रत्येक मास सरकार द्वारा मिलने वाली पेंशन के प्रति आभार व्यक्त करता हूं।शादी-ब्याह, मरना-जीना… जब सोनिया मायके जाती तब घर काटने को दौड़ता। भूख बंद हो जाती, बुख़ार आने लगता और सोनिया के आते ही जादू का असर होता। बुख़ार ग़ायब। अंदर की बात को सोनिया ने बिना कहे ही समझ लिया और कहीं भी जाना-आना उसने बहुत कम कर दिया। …
सोनिया की अर्थी बांधी जा रही थी, तब कोने में खड़ा मैं गिन रहा था। पूरे एक दर्जन दुशाले डाले गए थे उसकी मृत देह पर।
ज़िंदा थी तब जनवरी में हाड़ कंपाने वाली ठंड सहन करती रही। मैं कई बार कहता, ‘तुम्हारी रज़ाई में कुछ और रूई डलवाकर पिनवाने भिजवा देता हूं, गरम हो जाएगी।’ ‘नहीं नहीं, काम चल रहा है, ठंड अधिक होती है तो मैं अपना दुशाला ओढ़ लेती हूं। वैसे भी औरतों को ठंड कम ही लगती है।’ कहती हुई वह दहेज में लाया अपना दुशाला निकालकर दिखा देती। कई बार तो ऐसा होता कि रात को वो दुशाला उसकी रज़ाई पर होता परंतु सुबह-सवेरे उठता तो वह दुशाला मेरी रज़ाई से चिपका होता… जादूगरनी थी सोनिया।
ऐसे मरने का भी कोई मतलब होता है? पहले दिन ज्वर, घर की दवा-दारू… चौथे दिन हॉस्पिटल, कोरोना और पांचवें दिन दुनिया से विदा। न सेवा, न इलाज में कोई ख़र्च, न संवाद, सब कुछ मन का मन में। लोगों ने कहा भाग्यवान थी… उमर भर सबकी सेवा करती रही और मरते-मरते किसी को कष्ट नहीं दिया। परंतु मैं सोचता रहा सारी ज़िंदगी तो वफ़ादार बनी रही, परंतु जाते-जाते बेवफ़ाई कर गई।
तनिक अपनी सोनिया के बारे में सोचकर देखो। तुमसे डांट-फटकार खाकर भी सोनिया तुम्हारी सलामती के लिए करवा-चौथ के दिन भूखी-प्यासी तुम्हारे लिए दुआ मांगती है। समाज के सामने तुम्हारी ग़लतियों को छुपाती है। दुनिया में कहीं मिल सकता है ऐसा वफ़ादार, हमदर्द साथी? कभी इसके द्वारा किए गए काम की मज़दूरी जोड़ने लगे और वह उस मज़दूरी का हिसाब मांग बैठे तो तुम्हारा दिवाला पिट जाएगा।
पितृसत्ता का ग़ुरूर छोड़ दो, उसको भरपूर प्यार और सम्मान दो। इस बात को दफ़न कर दो कि औरत पांव की जूती होती है। उसको हमेशा अपने दिल के पास रखो, दिल से लगाकर रखो। कभी-कभी अपने हाथ से रोटी बनाकर उसे खिलाओ, घर में ख़ुशियों का अंबार लग जाएगा। मैंने सोनिया को खो दिया। जानता हूं अब वह कभी नहीं मिलेगी। सचमुच किसी की क़ीमत का पता तब लगता है जब वह हमारे पास नहीं होता। मित्रो, आज ही संभाल लीजिए अपनी सोनिया को, नहीं तो बहुत पछताओगे। इस बात को अच्छी प्रकार समझ लो कि जिस घर में सोनिया नहीं होती उस घर के द्वार पर कोई बिल्ली भी नहीं फटकती। उठो, एक बार अभी उठो, नहीं तो विलंब हो जाएगा… एक लाल गुलाब भी साथ ले जाओ, और टांक दो उसकी रंग बदलती ज़ुल्फ़ों में और बोल दो सोनिया, सोनिया, आई लव यू। वे मित्र भाग्यशाली हैं, जिनकी सोनिया उनके पास है। उसको सहेजकर रखो। बहुत प्यार और सुख देती हैं ये पत्नियां, विशेषकर वृद्धावस्था में, उनको उतना ही प्यार और आदर दीजिए। कभी आपकी सोनिया बीमारी में बिस्तर पकड़ ले तो लाज-शर्म छोड़कर पास बैठिए। कोई कुछ भी कहे, चाहे जोरू का ग़ुलाम या दीवाना, उसके ललाट को सहलाइए। वह चाहते हुए भी मना करेगी- ‘आप क्यों मुझे नरक में धकेल रहे हो? कहीं पति भी पत्नी की सेवा करता है?’ परंतु आप छोड़िए मत और हो सके तो अपने दोनों पोपले होंठ उसके माथे पर रख दीजिए। एक बार तो वह कहेगी, क्या कर रहे हो जी बहू-बेटी देखेंगी तो क्या सोचेंगी? कौन क्या सोचता है, उसकी फ़िक्र मत करना। बस, सोनिया और आप… बाक़ी दुनिया में कुछ भी नहीं। छूमंतर हो जाएगा उसका रोग। वह बिस्तर पर पड़ी रह ही नहीं सकती, आप उसको सहारा देकर अपनी बांहों में ले लीजिए। सच मानना दो-चार बरस तो उसकी ज़िंदगी अवश्य बढ़ जाएगी। ऐसा नहीं है कॉलेज के दिनों में, युवावस्था में हम किसी रंग-बिरंगे फूल पर न मंडराए हों, मोहब्बत के गलियारे में चक्कर न लगाए हों, सपने न बुने हों। परंतु परिवार ने बांधकर एक पुष्प पर बैठा दिया तो बैठा दिया। सोनिया के साथ जीवन भर का ऐसा आलिंगन हुआ कि अन्य फूल की ओर देखने का मन ही ना हुआ।कभी-कभी ऐसा भ्रम भी कुछ लोग पाल लेते हैं कि दूसरे घर की सोनिया अधिक सुंदर है। अपनी सोनिया के गुण व समर्पण उन्हें दिखाई नहीं देते। पड़ोस में हो या दफ्तर में, वे नकली सोनिया के चक्कर में पड़ जाते हैं। फिर दोनों के बीच जीवन की नैया डगमग-डगमग। दोस्तों, एक बार अपने घर की सोनिया के प्यार और समर्पण पर विचार तो कीजिए। आपका घर, किचन, औलाद, परिवार सब कुछ तो संभालती है वह और बदले में दो रोटी और मुट्ठी भर प्यार। आप इस समय ऑफ़िस में हैं या किसी सोनिया-टू के साथ रेस्तरां में बैठे एक ड्रिंक में दो स्ट्रॉ डालकर पी रहे हैं तो पाप कर रहे हैं आप… धोखा, सोनिया के साथ भी और अपने आपके साथ भी। …
चलिए, उठिए और दौड़ जाइए अपने घर, अपनी सोनिया के पास, चुपचाप पश्चाताप के दो आंसू उसे समर्पित कर दीजिए। मैंने अपनी सोनिया को बहुत नज़दीक से समझा है। सबकी सुख-सुविधा, मान-सम्मान का ध्यान रखती और जी-तोड़ और अथक परिश्रम करते हुए परिवार को आगे बढ़ाती चली गई। एक बार फिर नेलकटर को ढूंढता हूं। न मिलने पर पोते को आवाज़ लगाता हूं। प्रत्युत्तर में कोई जवाब नहीं मिलता। काश सोनिया ज़िंदा होती तो मेरे नाख़ून की फांस को मुझे इतनी देर परेशान न करने देती!