इंदौर में लोकायुक्त ने जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) शीला मरावी को 1 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया।
इन्दौर से रामकृष्ण सैलिया की रिपोर्ट
इंदौर लोकायुक्त की कार्रवाई: एक लाख रु की रिश्वत लेते पकड़ी गई शिक्षा विभाग की डीपीसी♦
- इंदौर में लोकायुक्त ने जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) शीला मरावी को 1 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया।
जिला परियोजना समन्वयक यानी डीपीसी शीला मरावी पर लोकायुक्त की बड़ी कार्रवाई हुई है। लोकायुक्त पुलिस ने डीपीसी को दस लाख की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा है। अधिकारी ने आवेदक से एक मामले में जारी जांच को खत्म करने के नाम पर दस लाख रु मांगे थे लेकिन बाद में मामला चार लाख रु में तय हुआ। ऐसे में फिर इंदौर शिक्षा विभाग में वेतन सम्बन्धी संकट नजर आ रहा है क्योंकि अधिकारी के दस्तखत के बिना कर्मचारियों का वेतन रिलीज नहीं होता है और कार्रवाई के बाद दीपावली में कर्मचारियों को बड़ी परेशानी हो सकती है।
शुरुआती जानकारी के मुताबिक 18 अक्टूबर 2024 को लोकायुक्त पुलिस ने यह पूरी कार्रवाई की। यह कार्रवाई ट्रेजर टाउन बीजलपुर निवासी और आवेदक दिलीप बुधानी की शिकायत पर की गई है, जो एमपी पब्लिक स्कूल (अशोक नगर) और एमपी किड्स (स्कूल अंजली) नगर के संचालक हैं। बताया जा रहा है कि शिकायतकर्ता को उसके स्कूलों की मान्यता निरस्त करने की धमकी दी जा रही थी और यह मामला जब डीपीसी के पास पहुंचा तो उन्होंने इस मामले को खत्म करने के लिए यह रिश्वत मांगी थी।
जानकारी के मुताबिक जिला परियोजना समन्वयक शीला मरावी ने मामले की जांच खत्म करने और आगे शिकायत न होने देने के एवज में 10 लाख रुपये की रिश्वत मांगी थी।
शिकायत पर सत्यापन के बाद, लोकायुक्त पुलिस ने फरियादी से 4 लाख रुपये में सौदा तय करवाया और इसकी पहली किश्त शुक्रवार को देना तय हुआ। फिर दोपहर को 1 लाख रुपये की पहली किश्त लेते हुए मरावी को पकड़ा गया।
कार्यालय में आकर पकड़ा
जानकारी के मुताबिक शीला मरावी ने राजेंद्र नगर इलाके में शिकायतकर्ता से रिश्वत ली थी। इस दौरान लोकायुक्त की टीम ने उनकी वीडियोग्राफी भी की। इसके बाद जब डीपीसी अपने कार्यालय पहुंचीं तो उनके साथ साथ लोकायुक्त की टीम भी यहां पहुंच गई और जैसे ही डीपीसी मरावी ने अपने कार्यालय पहुंचकर रिश्वत पैसे छुए उन्हें लोकायुक्त की टीम ने तुरंत ही पकड़ लिया।
कर्मचारी भी अटके
लोकायुक्त की टीम ने डीपीसी कार्यालय के सभी कर्मचारियों को कार्रवाई पूरी होने तक कार्यालय में ही रहने के लिए कहा था। जानकारी मिलने तक लोकायुक्त की यह कार्यवाही जारी थी और कर्मचारी अपने कार्यालय में ही मौजूद रहे।
जानकारी के मुताबिक डीपीसी कार्यालय में तो इस तरह की वित्तीय अनियमितताओं की खबरें आती ही रहती हैं। ज्यादातर मामलों में भ्रष्टाचार हॉस्टल के संचालन के खर्च और निजी स्कूलों को मान्यता देने के नाम पर होता है और डीपीसी कार्यालय के कई अधिकारी और कर्मचारी इसमें शामिल होते हैं।
बीते करीब दो साल में यहां चौथी बार डीपीसी बदल सकते हैं। दो वर्ष पहले डीपीसी अक्षय सिंह राठौर भी विवादों में रहे और बताया गया कि उनके कार्यकाल में भारी भ्रष्टाचार हुआ था। इसके बाद लगातार अधिकारी बदलते रहे। बीते दो अधिकारियों के कार्यकाल भी बेहद विवादित कहे गए।