मछुआरों एंव जलासायों के बीच रोड़ा बना मत्स्य महासंघ सदाशिव भंवरिया
मत्स्य महासंघ के अधिकारियों के लिए चारागाह बन चुका है एशिया महाद्वीप का सबसे बड़ा जलाशय

*मछुआरों और जलाशयों के बीच में रोड़ा बने मत्स्य महासंघ को हटाया जाए, महासंघ फिसड्डी साबित हुआः भंवरिया*
मत्स्य महासंघ अधिकारियों के लिए चारागाह बन चुका एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े म. प्र. के खंडवा जिले में बने इंदिरा सागर जलाशय को संचालित करने में मत्स्य महासंघ अब पूर्ण रूप से असफल होकर फिसड्डी साबित हो चुका है।
मछुआ कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष सदाशिव भंवरिया ने मत्स्य महासंघ के लिए यह बात कहते हुए बताया कि आलम तो यह है कि मछुआरों और महासंघ के हितों को नकारते हुए चंद महासंघ अधिकारियों ने इंदिरा सागर जलाशय को अपनी निजी संपत्ति मानते हुए स्वंयहित साधने की प्रयोगशाला बना ली है नतीजतन इंदिरा सागर जलाशय पर नियुक्त एक क्षेत्रीय प्रबंधक की कारगुजारियो के कारण बिते तीन वर्षों में इस जलाशय का मछली उत्पादन लगातार घटता गया तो मछुआरों के प्रति भी महासंघ की बेरुखी बढ़ती गई परिणाम स्वरूप मछली खरीदी के नाम पर दिए जा रहे ठेके लेने वाली कंपनी भी हताश होती गई और अंततः ठेका अवधि पूर्ण होने से कई महिने पहले ठेका छोड़ कंपनी यहां से पलायन कर गई। यहां का मत्स्य उत्पादन भारी मात्रा मे गिरने के पीछे के मुख्य कारणों मे एक प्रमुख कारण यह भी बताया जा रहा कि बिते दो तीन वर्षों में मत्स्य बीज जलाशय में न डालते हुए महज कागजों पर ही डाला गया है जिस कारण उत्पादन नगण्य होता गया। ठेका कंपनी व्दारा ठेका छोड़ने के करीब दो महीने बाद बंद पड़े मत्स्य आखेट कार्य को जब मछुआरों की मांग पर आरंभ किया गया तो उसमें भी इस क्षेत्रीय प्रबंधक ने अपने आला अधिकारियों की सांठ-गांठ से गजब की जादूगरी दिखाई और भंग पड़ी मछुआ समितियों के अध्यक्षो की एक दस सदस्यीय समिति बना कर मछली विक्रय का काम इस समिति को सौंप दिया जिसने ढ़ाई माह चले मत्स्याखेट के दौरान टनों मछली बेच दी किन्तु मछुआरों को आज तक हिसाब नही दिया है और गरीब मछुआरे अपनी कड़ी मेहनत का मेहनताना पाने के लिए भोपाल से लेकर खंडवा कलेक्टर के चक्कर लगा रहे है।
ज्ञात रहे कि पन्द्रह जून से पन्द्रह अगस्त दो महीने तक मत्स्याखेट पर प्रतिबंध रहता है जो सोलह अगस्त से पुनः आरंभ हो जाता है किन्तु एक महिना बित जाने पर भी मत्स्य महासंघ मत्स्याखेट अभी तक आरंभ नहीं कर पाया है और न ही निकट दिनों में इसके आरंभ होने के कोई संकेत है।
- श्री भंवरिया ने कहा कि मछुआरों की अब रत्ती भर परवाह न करने वाला मत्स्य महासंघ ठेका पद्धति को बढ़ावा देने का खुलेआम षड़यंत्र कर रहा है जिसका जीवंत उदाहरण यह है कि 2018 में पांच साल के लिए सत्तावन करोड़ रुपए में दिया मछली क्रय ठेका अब सात वर्षों के लिए पहले एक सौ पन्द्रह करोड़ में देने का टेंडर जारी करना और कोई टेंडर न आने पर गत छै महीनों से एक सौ पन्द्रह करोड़ राशि को लगातार घटाते जाना ही यह सिद्ध करता है कि मत्स्य महासंघ की रुचि मछुआरों के हित साधने की बजाय ठेका प्रवृत्ति को बढ़ावा देने में ज्यादा है जबकि होना यह चाहिए कि इंदिरा सागर जलाशय यहां के विस्थापित प्रभावित मछुआरों की समितियों के संघ को पट्टे पर दे या इस जलाशय में मत्स्याखेट रियल्टी आधार पर कराया जाए।