भोपालमध्य प्रदेश

*माझी समाज अपनी संख्या बल का इस्तेमाल अपने अधिकारों को पाने में करें: भंवरिया*

*माझी समाज अपनी संख्या बल का इस्तेमाल अपने अधिकारों को पाने में करें: भंवरिया*

म. प्र.मे माझी समाज की जनसंख्या लगभग पच्चीस लाख से अधिक है तथा इस समाज की आर्थिक और शैक्षणिक स्थिति कमजोर है प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में जहां यह बेहद कमजोर है वहीं शहरी क्षेत्रों में कुछ हद तक स्थिति ग्रामीण क्षेत्रों के मुकाबले थोड़ी ठीक है। ग्रामीण क्षेत्रों में माझी समाज ज्यादातर अपने हाथ-पांव पर निर्भर हो दिहाड़ी मजदुरी या बाजार हाट में छोटे मोटे व्यवसाय कर या अपने जातिगत कार्य मछली पालना पकड़ना और बेचने का कार्य कर अपना जीवनयापन करते हैं ठीक इससे मिलता-जुलता कार्य शहरी क्षेत्रों में भी यह समाज करता है शहरी व ग्रामीण क्षेत्रों के कुछ लोग पढ़ाई करके सरकारी नौकरियों में भी लगे है परन्तु अजजा का आरक्षण ले रहे ऐसे कर्मचारियो का भविष्य अंधकारमय हो गया है और पिता अजजा है तो उसके बच्चे इस लाभ से वंचित कर दिए गए हैं। वैसे बिते बीस पच्चीस वर्षों से आर्थिक रूप से ठीक- ठाक कुछ परिवारों के बच्चे उच्च शिक्षा पाकर डाक्टर इंजीनियर एवं आई टी और मैनेजमेंट के क्षेत्र मे पढ़ाई कर अच्छे पैकेज पर नेशनल और मल्टी नेशनल कंपनियों मे जांब करने लगे है। किन्तु अन्य जाति समुदायों के मुकाबले प्रदेश का माझी समाज राजनैतिक क्षेत्र मे अपनी भागीदारी और हिस्सेदारी में सबसे बहुत पिछे है जिसका एकमात्र कारण देखने में यह आता है कि समाज के ज्यादातर लोग स्वयं अपना वजूद खड़ा करने के बनिस्पत दूसरे का सहारा बनने मे अपने आपको महफूज समझते है तो वहीं राजनीतिक क्षेत्र मे किसी अपने का आगे बड़ना या उसे समर्थन देना इस समाज के कुछ लोगों को नागवार लगता है और जो कुछ लोग अपने स्तर पर राजनीति के क्षेत्र मे कुछ आगे तक पहुंचें हैं उनका मनोबल बढ़ाने के बजाय उन्हें हतोत्साहित ज्यादा करते हैं। जहा तक सामाजिक संगठनों की बात है तो बिते बीस पच्चीस वर्षों में माझी समाज मे संगठनों की बारिश हो रही है और संगठनो की बाढ़ सी आ गई है तथा ऐसे संगठनों मे होड़ लग गई है और ऐसे संगठन बढ़-चढ़ कर समाजसेवा मे अपने आपको अग्रणी बता रहे है जबकि सरकारी स्तर पर लाभ दिलाने की बात आती है तो यह तमाम संगठन अभी तक फिसड्डी ही साबित हुए हैं और आगे भी ऐसे संगठनों का कोई भविष्य नहीं है जबकि ऐसे संगठनों की बढ़ती संख्या के साथ समाज में बिखराव बढ़ता जा रहा है।

समाज की इतनी भारी भरकम संख्या का सदुपयोग हम अपने संवैधानिक अधिकार पाने और हमें हमारे पैतृक कार्यो को हासिल करने मे करे तो इसका लाभ हमारी भावी पीढ़ी को मिल सकता है परन्तु हम अपनी इस ताकत का इस्तेमाल सामुहिक विवाह या परिचय सम्मेलनों या हमारी मातृशक्ति चुनरी यात्रा कलश यात्रा या अन्य धार्मिक आयोजनों मे बढ़-चढ़ का शामील होना या कथावाचकों के प्रवचनों को सुनने मे अपने किमती पांच छै घंटे देना तो अपनी अपनी जिम्मेदारी समझती है जो हम सभी ने अपने अपने धर्मों के पालनार्थ करना भी चाहिए। किन्तु हमें अपने बच्चों का भविष्य बनाने तथा अपने अधिकारों को पाने के प्रति भी अब बेहद सचेत हो जाना चाहिए क्योंकि वर्तमान सरकारें हमारे अधिकार छिनने और उन पर कुठाराघात करने की राह पर तेजी से बढ़ रही है जिसे जल्द ही नही रोका गया तो इस प्रदेश में केवल हमारी संख्या रह जायेगी किन्तु तमाम अधिकार समाप्त हो जायेंगे…..?

इसलिए समाजजनों सामाजिक गतिविधियों सहित धर्म-कर्म के आयोजनों मे भी खूब बढ़-चढ़कर हिस्सा लो क्योंकि हमारे सनातनी धर्म की रक्षा के लिए यह भी जरूरी है किन्तु हमारे संवैधानिक अधिकारों पर होते कुठाराघातो से मुकाबला करने के वास्ते आपको अब सड़कों पर उतरना ही होगा..???

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