भोपालमध्य प्रदेश

ग्राम हिनोतिया में चल रहा पंच दिवसीय रुद्राभिषेक के द्वितीय दिवस में पं.कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा – जीवन की सफलता और सार्थकता हेतु उचित समय प्रबन्धन, आत्म-विश्वास, साहस और शुभ-संकल्प आरम्भिक साधन हैं। 

उपेन्द्र कुमार गौतम की रिपोर्ट

लक्ष्य के प्रति सचेत रहें : शास्त्री जी

बेगमगंज ,

ग्राम हिनोतिया में चल रहा पंच दिवसीय रुद्राभिषेक के द्वितीय दिवस में पं.कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा – जीवन की सफलता और सार्थकता हेतु उचित समय प्रबन्धन, आत्म-विश्वास, साहस और शुभ-संकल्प आरम्भिक साधन हैं।

अत: अपने लक्ष्यों के प्रति सचेत और सत्यनिष्ठ रहें । जीवन का हर क्षण एक उज्ज्वल भविष्य की सम्भावना लेकर आता है। यदि हमें जीवन से प्रेम है, तो यही उचित है कि समय को व्यर्थ नष्ट न करें, बल्कि सदुपयोग करें। यदि संकल्प शुभ-सकारात्मक व पारमार्थिक हो तो नियन्ता-नियति, परमात्मा-प्रकृति व सकल दैवसत्ता उसकी सिद्धि में सहायक होने लगते हैं। परमार्थवृत्ति व संकल्प-शुभता ही जीवन उन्नयन का मूल है। प्रगाढ़-कामना से ही संकल्प का जन्म होता है। तीव्र इच्छा शक्ति के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती। आत्म-विश्वास, दृढ़-निश्चय और शुभ-संकल्प जीवन सिद्धि के लिए श्रेष्ठतम साधन हैं। शुभकामनाएँ हमारे जीवन को शुभ बनाती हैं। शुभ चिन्तन और शुभ की कामना करना स्वयं को रूपांतरित करने का रसायन विज्ञान है तथा हमारी काया में रासायनिक परिवर्तन लाती है। उन्होंने कहा कि तीव्र इच्छा शक्ति के बिना सफलता प्राप्त नहीं होती। किसी भी तरह की सफलता अपने ही पुरुषार्थ और परिश्रम का फल होती है। जीवन-निर्माण के प्रत्येक क्षेत्र में संकल्प शक्ति को विशिष्ट स्थान मिला है। यों तो प्रत्येक इच्छा एक तरह की संकल्प ही होती है, किन्तु फिर भी इच्छायें संकल्प की सीमा का स्पर्श नहीं कर पातीं। उनमें पूर्ति का बल नहीं होता, अतः वे निर्जीव मानी जाती हैं। वहीं इच्छायें जब बुद्धि, विचार और दृढ़ भावना द्वारा परिष्कृत हो जाती हैं तो संकल्प बन जाती हैं। ध्येय सिद्धि के लिये इच्छा की अपेक्षा संकल्प में अधिक शक्ति होती है। संकल्प उस दुर्ग के समान है, जो भयंकर प्रलोभन, दुर्बल एवं प्रतिकूल परिस्थितियों से भी रक्षा करती है और सफलता के द्वार तक पहुँचाने में सहयोग प्रदान करती है। शास्त्रकारों ने “संकल्प मूलः कामौं …” अर्थात् कामना पूर्ति का मूल-संकल्प बताया है। इसमें संदेह नहीं है कि प्रतिज्ञा, नियमाचरण तथा धार्मिक अनुष्ठानों से भी वृहत्तर शक्ति संकल्प में होती है। शुभ-संकल्प रूपी बीज ऐसे ही फलित नहीं हो जायेंगे, परिश्रम रूपी जल से इन्हें सिंचित करना पड़ेगा और संकल्प रूपी खाद डालनी पड़ेगी। उत्कृष्ट या निकृष्ट जीवन यथार्थतः मनुष्य के विचारों पर निर्भर है। कर्म हमारे विचारों के रूप हैं। जिस बात की मन में प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, वह अपनी अभिरुचि या दृढ़ इच्छा के कारण गहरी नींव पकड़ लेती है तथा उसी के अनुसार बाह्य जीवन का निर्माण होने लगता है ।

 

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