प्रकृति वनस्पति का रक्षण हम सब करे : कमलेश कृष्ण शास्त्री
बेगमगंज आज शुक्रवार को नगर के श्यामनगर में एक दिवसीय रुद्राभिषेक पर पं. कमलेश कृष्ण शास्त्री ने कहा- – मनुष्य की भाँति अन्य सभी प्राणी, पशु-पक्षी भी प्रेम, करुणा, अपनत्व सुख और दुःख को समान रूप से अनुभूत करते हैं। प्राणी मात्र के प्रति हमारे आत्मवत् व्यवहार से ही जीवन संसिद्धि सम्भव है ..! प्राणीमात्र के प्रति प्रेम व सद्भाव की भावना रखना ही सच्चा मानव धर्म है। भारतीय संस्कृति प्राणिमात्र से प्रेम और उनके संरक्षण-संवर्द्धन का संस्कार देती है। हमें अपनी संस्कृति की इस महान प्रेरणा को आत्मसात करने का संकल्प लेना चाहिए। प्राणिमात्र से प्रेम करना ही वास्तविक भक्ति है। मनुष्य की भाँति अन्य सभी प्राणी, पशु-पक्षी भी प्रेम, करुणा, अपनत्व, सुख और दु:ख को समान रूप से अनुभूत करते हैं। प्राणीमात्र के प्रति अपनेपनके व्यवहार से ही जीवन की संसिद्धि सम्भव है। पशु-पक्षियों की निरीह आँखों से स्पंदित वेदनाओं के मर्म को समझने का प्रयत्न आपमें दैवत्व की प्रतिष्ठा करेगा। पशु या अन्य किसी भी देहधारी के प्रति क्रूरता संवेदनहीनता एवं नैतिक पतन की पराकाष्ठा है। आइये ! सृष्टि के सभी प्राणियों के प्रति प्रेम जगाएँ ! समष्टि के प्रति एकात्मता, ‘सर्वभूतहितेरता:’ व ‘सर्वे भवन्तु सुखिन:’ जैसे उदात्त भाव भारत का परम-वैशिष्ट्य हैं। अतः हम भारतीय मनुष्य व प्राणीमात्र के उन्नयन-उत्थान व उत्कर्ष के प्रति समर्पित हैं। जीवन निर्वाह ही जीवन का उद्देश्य नहीं। अतः दिव्य जीवन का निर्माण करें, जीवन को ढोयें नहीं, दिव्यता से जीयें। जब हम किसी को जीवन दे नहीं सकते, तब हमें किसी का जीवन लेने का बिल्कुल भी अधिकार नहीं है। जैसे हम जीना चाहते हैं, वैसे ही प्रत्येक प्राणी भी जीना चाहता है। इसलिए प्राणी मात्र की रक्षा में ही हमारी रक्षा निहित है। मनुष्य के बिना पशु जंगल में भी जीवित रह सकते हैं, लेकिन पशु-पंक्षियों के बिना मनुष्य जीवन जीना बहुत कठिन है। वन्य प्राणीयों से मनुष्य को कई प्रकार के लाभ हैं। क्षणिक स्वार्थ तथा स्वाद लोलुपता के कारण मनुष्यों द्वारा कई पशु-पक्षीयों की निरन्तर हत्या कर दी जा रही है। इस कारण कितने ही पशु-पक्षी विलुप्त होने की स्थिति में पहुँच गए हैं। इसलिए सभी को वन्य प्राणियों की रक्षा को लेकर काम करना चाहिए। आज वातावरण असंतुलित होता जा रहा है। हम सभी का यह कर्तव्य बनता है कि वन्य प्राणियों की रक्षा सहित प्रत्येक उत्सव में एक-एक पौधारोपण अवश्य करना चाहिए। पर्यावरण की रक्षा में प्रत्येक प्राणी का महत्वपूर्ण योगदान है। आज के विज्ञान ने भी सिद्ध कर दिया है कि जहाँ पर प्रकृति के साथ क्रूरता से छेड़छाड़ की जाती है, वहाँ पर बाढ़, भूकम्प, सूखा आदि विपदाओं को खुला निमंत्रण देना है। किसी प्राणी को बचाना तीन लोक की सम्पत्ति के दान से भी बढ़कर है। प्राणी मात्र से प्रेम करना परमात्मा की पूजा-सेवा से भी बढ़कर है। विश्व शान्ति के लिए अहिंसा से बढ़कर और कोई शास्त्र नहीं हो सकता। प्रकृति में जो परिवर्तन आ रहा है, उस विनाश से बचना है तो प्राणीमात्र को बचाने का संकल्प लेना ही होगा। मनुष्य जन्म से ही प्रकृति की गोद में अपना विकास व जीवन व्यतीत करता रहा है। वन और धरती पर चारों तरफ फैली हरियाली मानव के जीवन को न केवल प्रफुल्लित करती है, अपितु उसे सुख-समद्धि से सम्पन्न करके स्वास्थ्य भी प्रदान करती है। इसलिए वनों का संरक्षण किया ही जाना चाहिए, क्योंकि वनों का संरक्षण प्राणीमात्र के जीवन का संरक्षण है ।
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