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मजदूर,,,

मजदूर,,,,,,,,,,,,,

उम्मीद एवम विस्वास
का लेकर सहारा
हाथो में लेकर
अपने औजार सारे।
अलसुबह निकल पड़ता
बेचारा मजदूर।

ना धूप,ना गर्मी
ना मूसलाधार बारिस
परिश्रम ही हो जिसकी
वसीयत भरी धरोहर।

स्वाभिमान की खातिर
अपने बच्चो के खातिर
जान हथेली पर लेकर
निकल पड़ता है काम पर।

ना लोभ ना लालच
खुद झोपड़ी में रहकर
ओरो के बना देता महल
आलीशान बंगले,
फिर भी खामोश और सुकून
बस इतना करता है काम

परिश्रम ही कुंजी है,
यही सफलता की
आन बान शान है।
———कुमार राजेंद्र प्रसाद नामदेव
व्याबरा होशंगाबाद mp

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